अवतरण-दिवस पर विशेष :- ( संजय वर्मा)
भारत माता मंदिर के संस्थापक : स्वामी सत्यमित्रानंद
हरिद्वार जाने वाले हर तीर्थयात्री की प्राथमिकता हर की पैड़ी जाकर गंगा माँ के अमृत रूपी जल में स्नान करना होती है। इसके बाद वह वहाँ के प्राचीन और नूतन मन्दिरों के दर्शन करता है। नये मन्दिरों में भारत माता मन्दिर का प्रमुख स्थान है। इसके संस्थापक निवृत्त शंकराचार्य पद्मभूषण से अलंकृत महामण्डलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि जी महाराज थे।
स्वामी जी का जन्म 19 सितम्बर, 1932 को आगरा (उ.प्र.) में हुआ था। उनके पिता श्री शिवशंकर पाण्डेय एक सरकारी विद्यालय में पढ़ाते थे। अपने पुत्र का नाम उन्होंने अम्बिका रखा। अम्बिका का झुकाव शुरू से ही अध्यात्म की ओर था। दस वर्ष की अवस्था में ही वह नैमिषारण्य आ गये और प्राचीन धर्मग्रन्थों का अध्ययन करने लगे।
नैमिषारण्य में स्वामी वेदव्यासानन्द सरस्वती ने उनकी शिक्षा की व्यवस्था की। एक बार वहाँ संघ का शीत शिविर लगा, जिसमें सरसंघचालक श्री गुरुजी भी आये थे। अम्बिका के मन में गुरुजी के लिए बहुत श्रद्धा थी। वह पैदल चलकर शिविर में पहुँचे और उनसे आग्रह किया कि वे कुछ देर के लिए उनके आश्रम में चलें। गुरुजी ने उन्हें अपनी रजाई में बैठाया और गर्म दूध पिलवाया।
इससे उनका उत्साह दूना हो गया; पर गुरुजी का प्रवास दूसरे स्थान के लिए निश्चित था। अतः अम्बिका ने दुराग्रह नहीं किया। श्री गुरुजी से हुई इस भेंट ने उनके मन में संघ की जो अमिट छाप छोड़ी, वह जीवन पर्यंत उनके मन में बसी रही। 1949 में उन्होंने संघ के वरिष्ठ प्रचारक व समाजसेवी नानाजी देशमुख का भाषण सुना। तब से वे संघ के अति निकट आ गये थे। शिक्षा पूर्ण होने पर अक्षय तृतीया विक्रमी सम्वत 2017 (1960 ई.) में उन्हें भानुपुरा पीठ, मध्य प्रदेश के शंकराचार्य स्वामी सदानन्द गिरि ने संन्यास की दीक्षा दी। अब उनका नाम सत्यमित्रानन्द गिरि हो गया और वे पीठ के शंकराचार्य के रूप में अभिषिक्त हो गये; पर उनका मन आश्रम के वैभव और पूजा पाठ में कम ही लगता था। वे तो गरीबों के बीच जाकर उनकी सेवा करना चाहते थे; पर शंकराचार्य पद की मर्यादा इसमें बाधक थी। अतः उन्होंने इसके लिए योग्य उत्तराधिकारी ढूँढकर उन्हें सब काम सौंप दिया।
उस समय श्री गुरुजी इन्दौर में थे। स्वामी जी सीधे वहाँ गये और उन्हें यह सूचना दी। श्री गुरुजी ने कहा कि अब आप समाज सेवा अधिक अच्छी तरह कर पायेंगे। इसके बाद हरिद्वार आकर उन्होंने ‘भारत माता मन्दिर’ की स्थापना की। श्री गुरुजी के प्रति इस अपार श्रद्धा के कारण 2006 ई. में ‘श्री गुरुजी जन्मशती समारोह समिति’ का अध्यक्ष पद उन्होंने ही सँभाला।
भारतमाता मन्दिर में विभिन्न तलों पर भारत के महान् पुरुषों, नारियों, क्रान्तिकारियों, समाजसेवियों आदि की प्रतिमाएँ लगी हैं। इनको देखते हुए दर्शक जब सबसे नीचे आता है, तो वहाँ अखण्ड भारत के मानचित्र के आगे सुजलाम्, सुफलाम् भारत माता की विराट मूर्ति के दर्शन कर वह अभिभूत हो उठता है। अन्य मन्दिरों की तरह यहाँ पूजा, भोग, स्नान आदि कर्मकाण्ड नहीं होते।
भारत माता मन्दिर और समन्वय सेवा ट्रस्ट द्वारा अनेक सेवा कार्य चलाये जाते हैं। इनमें वेद विद्यालय, विकलांग एवं कुष्ठजन सेवा, चिकित्सा वाहन, वृद्धाश्रम, दृष्टिहीन सेवा, शहीद परिवार सेवा, सफाईकर्मी सेवा आदि प्रमुख हैं। स्वामी जी के ब्रह्मलीन हो जाने के पश्चात उनके उत्तराधिकारी एवं जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज इन सेवा कार्यों को निरंतर संचालित करते हुए भारत माता मंदिर समन्वय सेवा ट्रस्ट को उत्तरोत्तर प्रगति की ओर ले जा रहे हैं स्वामी जी के जन्मदिवस पर उन्हें शत-शत नमन
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