बाल साहित्य की चुनौतियों पर मंथन
सार्वजनिक पुस्तकालय की जरूरत पर भी दिया जोर
"रूम टु रीड" के आयोजन रीडिंग कंपेन के तहत सेमिनार का आयोजन
देहरादून 3 सितंबर ( जेके रस्तोगी संवाददाता गोविंद कृपा देहरादून )
नई पीढ़ी में पढ़ने की जिज्ञासा जगाने के उद्देश्य से रूम टू रीड का विशेष अभियान "रीडिंग कंपेन" के तहत शनिवार को एक स्थानीय होटल में सामुदायिक और सार्वजनिक पुस्तकालयों के महत्व पर सेमिनार का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर रूम टू रीड की राज्य प्रभारी पुष्पलता रावत ने कहा कि उत्तराखंड के सभी तेरह जिलों में सार्वजनिक पुस्तकालय हैं। देहरादून,हरिद्वार,रुड़की,नैनीताल,पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा जिलों में कुछ लोगों और संस्थाओं ने सामुदायिक पुस्तकालयों की स्थापना की है लेकिन बच्चों के लिए इनमें बहुत कम सामग्री उपलब्ध है। पढ़ने की संस्कृति को नई पीढ़ी में विकसित करने के लिए ज़रूरी है कि प्राथमिक विद्यालयों, आंगनबाड़ी और बालबाड़ी में मनोरंजक बाल साहित्य उपलब्ध करवाया जाय। उन्होंने कहा कि रूम टु रीड के रीडिंग कंपेन के दौरान उत्तराखंड के विभिन्न जनपदों में सेमीनार, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, सोशल मीडिया लाइव, स्टोरी टेलिंग, रीड ए थान, मोबाइल लाइब्रेरी, वॉल पेंटिंग, और रीडिंग कॉर्नर के जरिए पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए विविध गतिविधियां आयोजित की गईं।
कार्यक्रम में अपनी बात रखते हुए वरिष्ठ साहित्यकार बीना बेंजवाल ने कहा कि बच्चों में पढ़ना एक आदत बने, यह आज की आवश्यकता है। लेकिन बच्चे क्या पढ़ना पसंद करेंगे यह बच्चों पर छोड़ देना ही ठीक है। उन्होंने कहा कि जब बच्चे मनोरंजन के लिए पढ़ते हैं तभी उनका भाषाई विकास होता है। संप्रेषण के कौशल को विकसित करने के लिए नौनिहालों को सरल और कल्पना प्रधान साहित्य सुलभ कराया जाना चाहिए।
इतिहासकार योगेश धस्माना ने कहा कि बुनियादी शिक्षा को रुचिकर बनाने में बाल साहित्य से ज़्यादा कारगर कोई अन्य माध्यम नहीं है। ज़रूरत यह ध्यान रखने की है कि साहित्य में लैंगिक विभेद न हो और यह स्टीरियोटाइप न हो।
पर्वतीय बाल मंच की अदिति ने कहा कि बालिकाओं में संवेदना ज्यादा गहरी होती है। ऐसे में उनको जो भी सामग्री पढ़ने के लिए दी जाय वह कौशल -विकास को बढ़ावा देने वाली होनी चाहिए। भारत ज्ञान विज्ञान समिति के विजय भट्ट ने देहरादून के पुराने पुस्तकालयों की दुर्दशा पर क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि शहर के पुस्तकालय वहां के नागरिकों की बौद्धिक जागरूकता का परिचायक होते हैं। भाषाविद रमाकांत बेंजवाल ने पढ़ने की घटती संस्कृति से लोकभाषाओं की विलुप्ति के खतरों पर अपनी बात रखी।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में सार्वजनिक और सामुदायिक पुस्तकालयों के संचालकों ने अपनी बात रखी। आसरा ट्रस्ट के सी.आर.चौहान ने कहा कि पुस्तकालयों के लिए पठनीय बाल साहित्य जुटाना एक बड़ी चुनौती साबित होती है। उत्तराखंड जन जागृति संस्थान के अरण्य रंजन का सुझाव था कि पुस्तकालयों के विकास के लिए राज्य में एक समन्वित कार्यक्रम बनना चाहिए जिसमें सभी हितधारकों की सहभागिता हो। अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन के अशोक कुमार मिश्र ने कहा कि मोहल्ला पुस्तकालय जैसी अवधारणा पर काम हो तो गेजेट्स और मोबाइल में खोई पीढ़ी किताबों की तरफ़ लौटेगी। धाद के लोकेश नवानी का कहना था कि अभिभावक दूसरे शौक पूरा करने में खूब खर्च कर रहे हैं लेकिन किताबों को खरीदने में संकोच करते हैं। जब घर में पत्र - पत्रिकाएं होंगी ही नहीं तो मोबाइल की लत लगना स्वाभाविक है।
इस अवसर पर शिवा अग्रवाल,आशा डोभाल,प्रेम बहुखंडी,सुधीर भट्ट,तन्मय ममगाईं,सुभाष डबराल,किशन सिंह,सुधीर सुंदरियाल, उषा टम्टा,दीवान सिंह रावत,देवेश आदमी,प्रेम पंचोली,जयश्री,उमाशंकर,जयंत राय,धीरेंद्र मिश्रा,शिल्पी, निशा जोशी, रोहित गुप्ता, सुशांत मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन रोहिणी रॉय ने किया।
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