Hadappa ki sbhyata



 क्या आप हड़प्पा सभ्यता के विषय में जानते हैं?

भारत की प्राचीनतम सभ्यता, "सिंधु घाटी की सभ्यता" अथवा "हड़प्पा सभ्यता" के नाम से विख्यात है। हड़प्पा सभ्यता को सिंधु घाटी की सभ्यता इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसके प्रारंभिक अवशेष सबसे पहले सिंधु घाटी में ही मिले थे। हड़प्पा सभ्यता की खोज 19वीं शताब्दी के आरंभ में हुई थी। बीसवीं शताब्दी के आरंभिक दशकों तक इस सभ्यता की ओर विद्वानों ने कम ही ध्यान दिया परंतु बाद में हड़प्पा सभ्यता की खोज में आश्चर्यजनक प्रगति हुई। इस सभ्यता का केंद्र सिंधु घाटी के सिंध और पंजाब में था। यहां से इसका विस्तार दक्षिण और पूर्व में हुआ हड़प्पा संस्कृति का विस्तार एक त्रिभुजाकार क्षेत्र में था। इस सभ्यता का ज्ञान हमें पुरातात्विक स्रोतों से ही होता है क्योंकि उस समय का कोई साहित्य उपलब्ध नहीं है।

          1921 में एक भारतीय पुरातत्ववेत्ता दयाराम साहनी ने हड़प्पा का उत्खनन आरंभ किया इस उत्खनन के दौरान उन्हें आरंभिक ऐतिहासिक काल के पहले के स्तरों से अनेक मुहरे मिली। इससे पहले 1875 में विख्यात पुरातत्ववेता अलेक्जेंडर कनिंघम जो भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के पहले निदेशक को यह के उत्खनन से एक लिपिबद्ध मुहर मिली, टूटे भवनों के अवशेष मिले ।

          हड़प्पा सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी भारत में पहली बार नगरों का उदय और विकास इसी सभ्यता के अंतर्गत हुआ इसे प्रथम नगरीकरण कहा जाता है। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्हूदड़ों, लोथल, धोलावीरा, कालीबंगा, बनावली इस सभ्यता के महत्वपूर्ण स्थल है।

          हड़प्पा सभ्यता की प्रमुख विशेषता यहां की नगर निर्माण योजना है क्योंकि नगर निर्माण में बहुत समानता दिखाई देती है भवनों के निर्माण में एक माप की ईंटो का प्रयोग किया गया है। नगर निर्माण में सड़कों, नालियों तथा गंदे पानी की निकासी के लिए नालियों के प्रबंध पर विशेष ध्यान दिया गया। साथ ही साथ यहां पर नगरों का निर्माण दो स्तरीय दिखलाई देता है। विशाल, स्नानागार , अन्नागार, विशिष्ट भवन, पीने के पानी का प्रबंध,आदि के पुरावशेष मिले है।

          हड़प्पा सभ्यता की निश्चित अवधि विवाद का विषय है कुछ विद्वानों का मानना है कि इस सभ्यता का विकास 3250-2750 ई•पू• के मध्य हुआ तो कुछ का मानना है कि इसका विकास       2500- 1500bई•पू• माना है।

          सिंधु सभ्यता वाले जीवन निर्वाह के लिये पशुपालन , कृषि , शिल्प उद्योग , वाणिज्य - व्यापार पर आश्रित थे। इसके अतिरिक्त धातु गिरी,  मिट्टी के सामान बनाना , लकड़ी के सामान बनाना,  वस्त्रोद्योग, मनका बनाना, मुहर बनाना आदि यहां के प्रमुख कार्य थे।


Advertisement:

Buy the following article at just ₹100.

Contact us - mspvofficial@gmail.com






No comments:

Post a Comment

Featured Post

स्व0 ओम प्रकाश पुन्नी जी को जन्म शताब्दी पर दी गई श्रद्धांजलि

  स्वर्गीय ओम प्रकाश पुन्नी जी की सौ वी वर्षगांठ पर उत्तराखंड ब्लाइंड स्पोर्ट्स एसोसिएशन ने दी श्रद्धांजलि। आपको बता दें उत्तराखंड ब्लाइंड स...