विश्व हिंदू परिषद ने मनाया सामाजिक समरसता दिवस

 हरिद्वार 14 जनवरी ( संजय वर्मा ) विश्व हिंदू परिषद ने मकर संक्रांति के अवसर पर सम्पूर्ण हिन्दू समाज की सहभागिता से परस्पर सहकार–सहयोग–सम्मान की भावना के साथ बेहद आत्मीयता से


सामाजिक समरसता दिवस के रुप में एक सम्मेलन का आयोजन गौतम फार्म हाउस, कनखल, हरिद्वार में आयोजित किया। विश्व हिन्दू परिषद के सामाजिक समरसता दिवस सम्मेलन का शुभारम्भ परम पूज्य महामंडलेश्वर युग पुरुष श्री स्वामी परमानंद गिरी महाराज एवं महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद महाराज के साथ विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष सीनियर एडवोकेट आलोक कुमार ने संयुक्त रुप से दीपक प्रज्वलित करके किया। समरसता सम्मेलन में उपस्थित हिन्दू समाज को सम्बोधित करते हुए परम पूज्य महामंडलेश्वर युग पुरुष श्री स्वामी परमानंद गिरी महाराज ने कहा कि भगवान श्रीराम का जीवन चरित्र वर्तमान कलियुग में भी प्रासंगिक है। श्रीराम आज सामाजिक समरसता के प्रतिबिंब हैं। श्रीराम ने जीवन के सबसे कष्टमयी कालखंड में अपने सहयोगी और सलाहकार वनवासियों को ही बनाया, जिनमें केवट, निषाद, कोल, भील, किरात और भालू सम्मलित रहे। यदि श्रीराम चाहते तो अयोध्या या जनकपुर से सहायता ले सकते थे। उनके साथी वह जन बने, जिन्हें आज कुछ लोग आदिवासी, दलित, पिछड़ा या अति-पिछड़ा कहते हैं। इन सभी को श्रीराम ने ‘सखा’ कहकर संबोधित किया, तो वनवासी हनुमान को लक्ष्मण से अधिक प्रिय बताया था। आज अनेक राजनैतिक हिंदू समाज को विभाजित करके बांटने के भयंकर षड्यंत्र में लगे हुए हैं। यह राजनैतिक शक्तियां देश में अराजकता और हिंदू मानबिंदुओं को आघात पहुंचाने के उद्देश्य से एकत्रित होकर कालनेमि राक्षस के रूप में हिंदू समाज को दिग्भ्रमित करने का प्रयास कर रही हैं। 

महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद महाराज ने कहा कि रामायण केवल आस्था का विषय नहीं, अपितु यह उन सब जीवन मूल्यों का समावेश है, जो व्यक्ति, समाज और विश्व को सुखी और संतुष्टमयी रहने का मार्ग दिखाता है। भील समुदाय की शबरी माता का पिछड़ापन दोहरा है, क्योंकि वे गैर-अभिजात वर्ग की स्त्री हैं। श्रीराम शबरी के झूठे बेर सप्रेम ग्रहण करते हैं। राम को देखकर शबरी कहती हैं, “अधम ते अधम अधम अति नारी। तिन्ह महँ मैं मतिमंद अघारी।। इस पर श्रीराम कहते हैं - मैं तो केवल एक भक्ति ही का संबंध मानता हूं। जाति, पांति, कुल, धर्म, बड़ाई, धन, बल, कुटुम्ब, गुण और चतुरता इन सबके होने पर भी भक्ति से रहित मनुष्य कैसा लगता है, जैसे जलहीन बादल। मां सीता की रक्षा में अपने प्राणों की बाजी लगाने वाले मांसाहारी गिद्धराज जटायु जो वर्तमान में एक निकृष्ट पक्षी है, उसे श्रीराम कर्मों से देखते है और एक पितातुल्य बोध के साथ उसका अंतिम-संस्कार करते है। यह सूचक है कि श्रीराम के लिए केवल कर्म ही महत्व रखता है, शेष निरर्थक। 

विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा कि हिंदू समाज में जो दरारें हैं उन्हें चौड़ा करने के बजाए उसे भरना महती कार्य है। सन 1964 में विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना का उद्देश्य ही हिन्दू समाज को समरस करना था। विहिप ने कुंभ के अवसर पर प्रयागराज में प्रथम विश्व हिंदू सम्मेलन आयोजित कर किया, इसमें एकमत से संत समाज ने एक स्वर में घोषणा की थी कि हिंदू समाज में किसी भी प्रकार की छुआछूत पाप है और सभी हिंदू बराबर हैं, किसी भी हिंदू से कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। श्रीराम ने वन गमन के समय निषादराज को भी गले लगाया, केवट को भी पूरा सम्मान दिया। इतना ही नही भगवान राम ने उन सभी को अपना अंग माना जो आज समाज में हेय दृष्टि से देखे जाते हैं। इसका यही तात्पर्य है कि भारत में कभी भी जातिगत आधार पर समाज का विभाजन नहीं था। समाज की भी अवधारणा है, समाज का कोई भी हिस्सा वंचित हो जाए तो सामाजिक एकता की धारणा समाप्त होने लगती है। हमारे देश में जाति आधारित राजनीति के कारण ही समाज में विभाजन के बीजों का अंकुरण किया गया। जो आज एकता की मर्यादाओं को तार-तार कर रहा है। भारतीय वांग्यमयों की मार्क्स-मैकॉले मानसपुत्रों ने अपने कुटिल एजेंडे के अनुरूप विवेचना की है। उनका उद्देश्य सामाजिक कुरीतियों को मिटाना नहीं, अपितु उनका उपयोग करके ‘असंतोष’ का निर्माण करना है। जहां अन्याय नहीं होता, वहां वह झूठे नैरेटिव के बल पर असंतोष को गढ़ते हैं। ऐसे ही कई मिथकों से वर्ग-संघर्ष अर्थात हिंसा को जन्म दिया जाता है। रामायण, महाभारत इत्यादि के साथ भी वामपंथियों ने यही किया है। राम का जन्म किसी वंचित की हत्या करने हेतु नहीं हुआ था। उनका अवतरण रावण के रूप में अन्याय, अनाचार और अभिमान को समाप्त करने हेतु था। राम अपने जीवनकाल में मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए, तो उनके द्वारा प्रदत्त मूल्य वर्तमान में आज भी प्रासंगिक है। श्रीराम द्वारा स्थापित आदर्श— व्यक्ति, समाज और विश्व को अधिक सहज और सुखमय बनाने का भाव रखते हैं।

विश्व हिन्दू परिषद के सामाजिक समरसता सम्मेलन में महामंडलेश्वर स्वामी ज्योतिर्मयानंद गिरी महाराज एवं महन्त केशवानंद और समस्त हिन्दू समाज के साथ–साथ कोरी, सुतार, सुनार, गिरी, गोस्वामी, वाल्मिकी, अहार, कहार, धीमान, सैनी, ब्राह्मण, त्यागी, क्षत्रिय, वैश्य आदि अनेक समाज के प्रतिनिधी सम्मिलित हुए। सामाजिक समरसता सम्मेलन में प्रमुख रुप से प्रान्त उपाध्यक्षा संध्या कौशिक, प्रान्त संयोजक बजरंग दल अनुज वालिया, मातृशक्ति प्रमुख नीता कपूर, दुर्गावाहिनी संयोजिका नीलम त्रिपाठी, प्रांत सेवा प्रमुख अनिल भारतीय, प्रांत अखाड़ा प्रमुख सौरभ चौहान, विभाग अध्यक्ष बलराम कपूर, विभाग संयोजक नवीन तेश्वर, नगर संगठन मंत्री कुलदीप पंचोली, संगठन मंत्री मोहित, भूपेंद्र सैनी, जीवेंद्र तोमर, मयंक चौहान, अमित मुल्तानिया, कमल उलानिया के साथ अनेक संगठन कार्यकर्ता उपस्थित रहें।


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