विनय सहस्त्रबुद्धे ने किया देव संस्कृति विश्वविद्यालय में हिंदी साहित्य सम्मेलन का शुभारंभ

 देसंविवि में दो दिवसीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का शुभारंभ

विश्व में स्थापित करना है हिन्दी ः डॉ सहस्रबुद्धे

हिन्दी सर्वव्यापक हो ः न्यायमूर्ति श्री शर्मा

विश्व में हिन्दी को प्रथम स्थान पर ले जाने की आवश्यकता ः डॉ चिन्मय पण्ड्या

हिन्दी साहित्यकारों को विशेष प्रतीक चिह्न भेंट कर किया सम्मानित  

हरिद्वार 14 सितंबर।( अमरेश दुबे संवाददाता गोविंद कृपा ऋषिकेश क्षेत्र )



देवसंस्कृति विश्वविद्यालय शांतिकुंज में दो दिवसीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर मुख्य अतिथि आईसीसीआर के अध्यक्ष डॉ विनय सहस्रबुद्धे, न्यायमूर्ति श्री विवेक भारती शर्मा, देसंविवि के प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पण्ड्या जी, डॉ संजीव चोपडा, डॉ. लक्ष्मीशंकर वाजपेयी आदि ने संयुक्त रूप से दीपप्रज्वलन एवं युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी के चित्रों पर पुष्पांजलि अर्पित किया।

उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि आईसीसीआर के अध्यक्ष डॉ विनय सहस्रबुद्धे ने कहा कि हिन्दी को विश्व भर में स्थापित करना है। इससे पहले हम सभी को अपने अंदर हिन्दी को प्रतिष्ठापित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं में हिन्दी बड़ी बहिन समान है। अपने दैनिक व्यवहार में भी हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए। हमारे युवाओं को चाहिए कि वे हिन्दी साहित्य का ज्यादा से ज्यादा अध्ययन करें, जिससे वे हिन्दी शब्दकोष से सम्पन्न हों। डॉ सहस्रबुद्धे ने मैथिलीशरण गुप्त, महादेवी वर्मा आदि हिन्दी साहित्य के प्रथम पंक्ति के रचनाकारों का अनुकरण करते हुए हिन्दी साहित्य की नई रचना के लिए प्रेरित किया।

देसंविवि के प्रतिकुुलपति डॉ चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि विश्व में हिन्दी को प्रथम स्थान पर ले जाने हम सभी को अभिप्सा होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति हमारे मन, वचन, चिंतन में समाया हुआ होना चाहिए। उन्होंने कहा कि लौकिक ग्रंथ लेखक को प्रतिष्ठा दिलाती है, जबकि वैदिक गं्रंथ, वैदिक मंत्र के माध्यम से रचनाकार को जाना जाता है। हमारी संस्कृति की यही विशेषता रही है। उन्होंने हिन्दी साहित्य के विकास हेतु विस्तृत जानकारी दी।

सम्मेलन के विशिष्ट अतिथि नैनीताल उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री विवेक भारती शर्मा ने कहा कि विश्व में सबसे ज्यादा प्रयोग होनी वाली भाषा में हिन्दी का तीसरा स्थान है। उन्होंने कहा कि हिन्दी सर्वव्यापक हो, इसके लिए हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि उत्तर भारत में हिन्दी संस्कृति के लिए समर्पित संस्थानों को विकसित करने की आवश्यता है। हिन्दी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए सभी प्रयास करना चाहिए। वैल्यू ऑफ वर्ड्स के संस्थापक डॉ संजीव चोपड़ा ने हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए के लिए चलाये जा रहे विविध कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी दी। वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने हिन्दी साहित्य के विस्तार पर चर्चा की। इस दौरान हिन्दी साहित्यकार श्री अनिल रतुड़ी, सुश्री ममता किरण, श्री व्यास मिश्र, डॉ सुशील उपाध्याय, श्री अशोक पाण्डेय आदि को विशेष प्रशस्ति पत्र भेंटकर सम्मानित किया गया।

समापन से पूर्व अतिथियों को रक्त चंदन का पौधा, स्मृति चिह्न, पंचतीर्थ चित्र आदि भेंट किया। इस अवसर पर देसंविवि के कुलसचिव श्री बलदाऊ देवांगन, संकायाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष, शिक्षक, शिक्षिकाएँ आदि सहित विभिन्न स्थानों से आये शिक्षाविद व साहित्यकार उपस्थित रहे।

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