विश्व हिंदू परिषद के सनातन हिंदू धर्म की रक्षा और प्रचार प्रसार के स्वर्णिम 60 वर्ष




*विहिप के 60 वर्ष: उपलब्धियां व चुनौतियाँ* 

देश की राजनैतिक स्वतंत्रता के पश्चात कथित सेक्युलर वाद के नाम पर हिन्दू समाज पर बढ़ते अन्याय तथा  ईसाईयों व मुसलमानों के तुष्टिकरण के बीच 1957 में आई नियोगी कमीशन रिपोर्ट आई। इस में ईसाई मिशनरियों द्वारा छल, कपट, लोभ, लालच व धोखे से पूरे देश में हिंदुओं के धर्मांतरण की सच्चाई सामने आने के बावजूद, तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा धर्मांतरण के विरुद्ध केंद्रीय कानून बनाने से स्पष्ट मना कर दिया गया। उधर विदेशों में रहने वाला हिन्दू समाज भी अपनी विविध समस्याओं के समाधान हेतु भारत की ओर ताक तो रहा था किन्तु, उसके प्रति भी केंद्र सरकार के उदासीन रवैए ने निराश ही किया। ऐसे में हिन्दू समाज को संगठित कर धर्म रक्षा करने तथा हिन्दू धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन मूल्यों की रक्षा हेतु, साठ वर्ष पूर्व, जन्माष्टमी (अंग्रेजी दिनांक अनुसार 29 अगस्त 1964) को विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना हुई। 

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक और हिदुस्तान समाचार के संस्थापक श्री दादासाहेब आप्टे जी के साथ, श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर, पवई, मुम्बई स्थित पूज्य स्वामी चिनमयानन्द जी के आश्रम सांदीपनि साधनालय में पूज्य स्वामी चिनमयानन्द, राष्ट्रसंत तुकडो जी महाराज, सिख सम्प्रदाय से माननीय मास्टर तारा सिंह, जैन सम्प्रदाय से पूज्य सुशील मुनि, गीता प्रेस गोरखपुर से हनुमान प्रसाद पोद्दार, के एम मुंशी तथा पूज्य श्री गुरुजी सहित 40-45 अन्य महानुभाव भी उपस्थित थे।

इसी बैठक में 1. हिन्दू समाज को संगठित और जागृत करने, 2. उसके स्वत्वों, मानबिन्दुओं तथा जीवन मूल्यों की रक्षा और संवर्धन करने तथा; 3. विदेशस्थ हिंदुओं से संपर्क स्थापित कर उन्हें सुदृढ़ बनाने व उनकी सहायता करने सम्बन्धी विश्व हिंदू परिषद के तीन मुख्य उद्देश्य तय किए गए। 

हिन्दू की परिभाषा करते हुए कहा गया कि “जो व्यक्ति भारत में विकसित हुए जीवन मूल्यों में आस्था रखता है या जो व्यक्ति स्वयं को हिन्दू कहता है वह हिन्दू है”। 

22 से 24 जनवरी 1966 को कुम्भ के अवसर पर 12 देशों के 25 हज़ार प्रतिनिधियों की सहभागिता के साथ प्रथम विश्व हिंदू सम्मेलन प्रयाग में सम्पन्न हुआ। इसमें 300 प्रमुख संतों के साथ पहली बार प्रमुख शंकराचार्य भी एक साथ आए और धर्मांतरण पर रोक व परावर्तन (घरवापसी) का संकल्प लिया गया। मैसूर के महाराज  मा० चामराज जी वाडियार को प्रथम अध्यक्ष व दादासाहब आप्टे को पहले महामंत्री के रूप में घोषित कर विहिप की प्रबंध समिति की घोषणा भी हुई। इस सम्मेलन में जहां परावर्तन को मान्यता देने का ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित हुआ वहीँ विहिप के बोध वाक्य “धर्मो रक्षति रक्षितः” और बोध चिह्न “अक्षय वटवृक्ष” भी तय हुआ।

  बाबा साहिब डॉ भीमराव अम्बेडकर का मत था कि यदि देश के संत महात्मा मिलकर यह घोषित कर दें कि हिन्दू धर्म-शास्त्रों में छुआछूत का कोई स्थान नहीं है तो इस अभिशाप को समाप्त किया जा सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए 13-14 दिसम्बर 1969 के उडुपी धर्म संसद में संघ के तत्कालीन सर-संघचालक श्री गुरूजी के विशेष प्रयासों के परिणाम स्वरूप, भारत के प्रमुख संतों ने एकस्वर से “हिन्दव: सोदरा सर्वे, ना हिन्दू पतितो भवेत्” के उद्घोष के साथ सामाजिक समरसता का ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया.

1994 में काशी में हुई धर्म संसद का निमंत्रण डोम राजा को देने पूज्य संत ना सिर्फ स्वयं चलकर गए बल्कि उनके घर का प्रसाद ग्रहण किया तथा अगले दिन डोम राजा धर्म संसद के अधिवेशन में संतों के मध्य बैठे और संतों ने उन्हें पुष्प हार पहनाकर स्वागत किया । इस धर्म संसद में 3500 संत उपस्थित थे। वनवासी, जनजाति, अति पिछड़ी व पिछड़ी जाति के हज़ारों लोगों को ग्राम पुजारी के रूप में प्रशिक्षण देकर उनका समय समय पर अभिनन्दन व मंदिरों में पुरोहित के रूप में नियुक्ति, विहिप के ग्राम पुजारी प्रशिक्षण अभियान के कारण ही संभव हुई।  

9 नवम्बर 1989 में श्रीराम जन्मभूमि का शिलान्यास एक अनुसूचित जाति के कार्यकर्ता कामेश्वर चौपाल द्वारा कराए जाने के अतिरिक्त, देश भर में आयोजित समरसता यज्ञ, समरसता यात्राएं, समरसता गोष्ठियां, हिन्दू परिवार मित्र योजना, अनुसूचित जाति व जन जातियों के लिए छात्रावास इत्यादि अनेक योजनाओं व कार्यक्रमों के माध्यम से हिन्दू समाज के बीच व्याप्त छूआछूत के अभिशाप से मुक्ति हेतु अभूतपूर्व कार्य किए हैं। सन् 2003 से लगातार देशभर में भगवान वाल्मीकि, संत रविदास तथा संविधान निर्माता डॉ भीमराव अम्बेडकर इत्यादि महापुरुषों, जिन्होंने देश की समरसता में योगदान दिया, की जयन्तियां व्यापक रूप से मनाई जा रही हैं। इन सब कार्यक्रमों के परिणाम स्वरूप अब संत समाज सहज रूप से वंचित बस्तियों में प्रवास, प्रवचन व सह-भोज सहजता से करते हैं।     

द्वितीय विश्व हिंदू सम्मेलन भी प्रयाग की पावन धरा पर 27 से 29 जनवरी 1979 को 18 देशों के 60 हज़ार प्रतिनिधियों की सहभागिता से सम्पन्न हुआ। इसका उदघाटन पूज्य दलाई लामा जी ने किया। तथा उनका स्वागत ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य जी ने किया। यह भी एक ऐतिहासिक प्रसंग  था।

देश के वनवासी, गिरिवासी व नगरवासियों के कुम्भ के रूप में असम के जोरहाट में 27 से 29 मार्च 1970 में देश की सभी प्रमुख तीर्थों व 45 नदियों के जल से एकात्म हुए इस सम्मेलन में अनेक पूज्य संत-महात्माओं व पूर्वोत्तर के विचारकों के साथ नागारानी गाइडिन्ल्यु ने यह घोषणा की कि प्रकृति पूजक वनवासी समाज जिसे ईसाई मिशनरियां अपने चंगुल में फंसा रही हैं, हिन्दू समाज का ही अभिन्न अंग है। 

1982 में श्री अशोक सिंघल विश्व हिन्दू परिषद के पदाधिकारी बने। व्यापक जन जागरण के कार्यक्रम होने लगे। 1983 में हुई एकात्मता यात्रा में तो देश के 6 करोड़ लोगों ने सहभाग किया। अप्रैल 1984 में नई दिल्ली में प्रथम धर्म संसद का अधिवेशन संपन्न हुआ।

विश्व हिंदू परिषद द्वारा समाज के सहयोग से देश भर में 45 सौ से अधिक सेवा प्रकल्प भी चलाए जा रहे हैं। इनमें 31 प्रांतों के 93 हजार स्थानों पर 840 संस्कार शालाओं में 17 हजार बच्चे पढ़ रहे हैं। इनके अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, स्वावलंबन केंद्र, आवासी छात्रावास, अनाथालय, चिकित्सा केंद्र, कम्प्यूटर, सिलाई, कढ़ाई प्रशिक्षण केंद्र, विवाह केंद्र इत्यादि प्रमुख हैं। 

गौ रक्षा, गौ पालन व गौ सम्वर्धन के क्षेत्र में विश्व हिन्दू परिषद् ने अनेक कार्य किए हैं। देश में 60 स्थानों पर गौवंश की देशी नस्लों का सम्वर्धन, 40 स्थानों पर पंचगव्य आधारित औषधि निर्माण केंद्र तथा तीन पंचगव्य अनुसंधान केंद्र इस समय कार्यरत हैं। 25 लाख गौवंश की कसाइयों से मुक्ति, अनेक राज्यों में गौवंश हत्या के विरुद्ध कठोर कानून की व्यवस्था और गौपालन से स्वावलंबन की ओर योजना के अन्तर्गत पांच गायों से 50 हजार मासिक की कमाई तथा गौवंश आधारित ऋण मुक्त, कृषि व रोजगार युक्त युवक की दिशा में विहिप ने मह्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं। अनेक राज्यों में गौ रक्षा हेतु कठोर कानून भी बनवाए हैं।    

विहिप ने अवैध धर्मांतरण पर रोक तथा धर्मान्तरित हिन्दू भाई-बहिनों को अपनी जड़ों से पुन: जोड़ने की दिशा में भी बड़ा कार्य किया है। अभी तक लगभग 40 लाख हिन्दुओं के धर्मांतरण को रोकने के साथ-साथ लगभग 9 लाख की घरवापसी भी हुई है। अनुसूचित जाति, जन जाति, वनवासी व गिरिवासी समाज के बीच सेवा, समर्पण व स्वावलंबन के मंत्र के साथ अनेक राज्यों में छल-बल पूर्वक धर्मान्तरण के विरुद्ध कठोर दण्ड की व्यवस्था वाले कानून विहिप के सतत प्रयासों के कारण ही बन पाए हैं। 8 हजार बहिनों को लवजिहाद के षडयन्त्र से बचाया।   

भारत धर्म यात्राओं का देश है जिसकी आत्मा तीर्थों में वास करती है। इन यात्राओं के माध्यम से ही देश, धर्म व समाज की एकता, अखण्डता और समरसता प्रतिबिम्बित होती है। बात चाहे कांवड़ यात्रा की हो या कैलाश मान सरोवर की, अमर नाथ यात्रा हो या गोवर्धन परिक्रमा, जगन्नाथ की नव कलेवर यात्रा हो या सिन्धु यात्रा, श्रीराम जानकी विवाह बारात यात्रा हो या बाबा अमरनाथ की यात्रा, इन सभी को सस्ती, सफल, सुखद, संस्कारित व आध्यात्मिक स्वरूप देने में विश्व हिन्दू परिषद् के धर्मं यात्रा महासंघ ने वर्ष 1995 से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। शासन-प्रशासन व सम्बन्धित सरकारों के साथ अनवरत संपर्क के माध्यम से इन्हें व्यवस्थित भी किया गया है। अनेक मृत प्राय: यात्राओं को पुनर्जीवित भी किया।         

‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा को लेकर विदेशों में बसे हिन्दू समाज की सुरक्षा, संस्कार व उनके अन्दर हिन्दू जीवन मूल्यों को जीवंत रखने हेतु विहिप ने अनेक कदम उठाए है। विश्व के किसी भी भू भाग पर रहने वाले हिन्दू की आवाज के रूप में विहिप कार्यकर्ता सदैव अग्रणी रहे हैं। इसी कारण विहिप ने अमेरिका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, कनाडा, फिजी, न्यूजीलेंड, डेनमार्क, थाईलेंड, इंडोनेशिया, ताईवान, श्रीलंका, नीदरलैंड, सिंगापुर, नेपाल, जर्मनी इत्यादि देशों में अनेक स्थानीय व वैश्विक स्तर के सम्मेलनों का आयोजन सफलता पूर्वक किया तथा इनमें से अधिकाँश देशों में हिन्दू त्योहारों, परम्पराओं को धूमधाम से मनाया जाता है.

अपने 60 वर्षों की विकास यात्रा में विहिप ने अनेक जन जागरण अभियान चलाए जो वैश्विक कीर्तिमान बन गए। 1984 में प्रारम्भ हुए श्री राम जन्म भूमि मुक्ति आन्दोलन ने देश के लाखों गाँवों के 65 करोड़ लोगों को जोडा। सड़क से संसद व सर्वोच्च न्यायालय तक अपनी आवाज बुलंद कर 496 वर्षों के संघर्ष के उपरांत, देश के स्वाभिमान का  पुनरजागरण करते हुए, 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में रामलला कि प्राण प्रतिष्ठा ने इस ऐतिहासिक दिवस को स्वर्णाक्षरों में दर्ज करा दिया। 

1995 में जब आतंकियों ने बाबा अमरनाथ की यात्रा को बंद करने की धमकी देते हुए यह कहा कि यदि कोई आएगा तो वापस नहीं जाएगा। बजरंगदल के आह्वान पर 51 हजार बजरंगी व एक लाख अन्य शिव भक्तों ने जय भोले की हुंकार भरते हुए उस दुर्गम यात्रा की ओर जब कूच किया तो उस यात्रा को रोकने का कोई आज तक दुस्साहस नहीं कर पाया। पूंछ जिले के सीमांत क्षेत्र को हिन्दू विहीन करने के जिहादी षड्यंत्र को भांपते हुए बजरंग दल ने 2005 में बाबा बूढ़ा अमरनाथ की यात्रा को जब पुन: प्रारम्भ कराया तो वहां से हिन्दुओं का पलायन भी रुका और समाज व सुरक्षा कर्मियों का आत्मविश्वास भी बढ़ा। इनके अलावा मेवात में नलहड़ महादेव यात्रा, कर्नाटक में दत्ता पीठ यात्रा तथा अयोध्या से जनकपुर तक जाने वाली श्री राम-जानकी बारात यात्रा भी सामाजिक समरसता व एकात्मता का भाव जागृत कर रही हैं।   

भगवान श्रीराम के आदेश पर नल व नील द्वारा दक्षिण में बनाए गए राम सेतु को तत्कालीन सरकार के हमले से बचाने हेतु भी विहिप ने एक बड़ा जन आन्दोलन खडा किया था। जब तत्कालीन केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में श्री राम के अस्तित्व को ही नकार दिया तो विहिप के मात्र चार घंटे के सफल देशव्यापी चक्का जाम ने सरकार को उसी दिन झुकने को मजबूर कर दिया। दिल्ली के स्वर्ण जयंती पार्क में उपस्थित लाखों राम भक्तों के सैलाब के आगे सरकारी जिद धरी रह गई। 

विहिप की युवा शाखा बजरंग दल तथा दुर्गा वाहिनी ने 1984 से लेकर आज तक देश-धर्म संस्कृति व राष्ट्र की रक्षार्थ सदैव अग्रणी भूमिका निभाई है। सेवा, सुरक्षा व संस्कार इनके मूल मंत्र रहे हैं। संस्कृत भाषा, वेद पाठशाला तथा संस्कारों की अभिवृद्धि हेतु भी विहिप ने अनेक कदम उठाए हैं। 

इतने सब के बावजूद हमारे समक्ष धर्मांतरण, लव जिहाद, सामाजिक समरसता, धर्म स्थलों को सुरक्षा व सरकारी अधिग्रहण से मुक्ति, संस्कृति व संस्कारों का क्षरण, धार्मिक शिक्षा व जागरूकता का अभाव, विदेशी घुसपैठ, जनसंख्या असंतुलन जैसी अनेक चुनौतियाँ सामने खड़ी हैं जिनका मुकाबला करते हुए हिन्दू समाज को इनसे मुक्ति दिलानी है।       

*** लेखक विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। अणु डाक: vinodbansal01@gmail.com *** 


*Article on the 60th Anniversary of VHP:*


*VHP’s 60 Years: Achievements and Challenges ahead*

- Vinod Bansal  

National Spokesperson, VHP


After the political independence of the country, the increasing injustices on Hindu society in the name of secularism and appeasement of Christians and Muslims led to the presentation of the Niyogi Commission Report in 1957. Despite the revelation of the truth about religious conversions of Hindus through deceit, greed, and fraud by Christian missionaries, the then central government clearly refused to enact a central law against conversions. Meanwhile, the Hindu society living abroad was looking towards India for solutions to its various problems, but the central government’s indifferent attitude only led to further disappointment. In this context, to organize Hindu society, protect dharma, and preserve Hindu religious, social, and cultural values, the Vishva Hindu Parishad (VHP) was established sixty years ago on Janmashtami (August 29, 1964).


On this auspicious occasion of Krishna Janmashtami, a meeting was held at the Sandeepani Sadhanalaya Ashram in Powai, Mumbai, with esteemed figures including Swami Chinmayananda, revered Sant Tukadoji Maharaj, Master Tara Singh from the Sikh Samaj, revered Sushil Muni from the Jain Samaj, Hanuman Prasad Poddar from Gita Press Gorakhpur, K. M. Munshi, and around 40 other dignitaries. 


*Objectives:*

In this meeting, three main objectives of the VHP were determined: 1. To organize and awaken Hindu society, 2. To protect and promote its rights, values, and life principles, and 3. To establish contact with Hindus abroad and assist them in strengthening and supporting them.


The definition of a Hindu was stated as, “A person who has faith in the life values developed in India or who identifies as Hindu is a Hindu.” 


*Stop Conversion & promote Gharvapsi:*

The first World Hindu Conference was held in Prayag from January 22 to 24, 1966, with the participation of 25,000 delegates from 12 countries. For the first time, Shankaracharyas, along with 300 prominent saints, came together to resolve to prevent conversions and promote Gharwapsi (Back to the routes). Maharaja Chamraj Wadiyar of Mysore was declared the first president, and Dadasaheb Apte was appointed as the first General Secretary, and the VHP’s executive committee was formed. This conference also saw the adoption of the VHP's motto "Dharmo Rakshati Rakshitah" and its symbol "Akshaya Vatavriksha”. These were later became part of its Logo.


VHP has also made significant efforts to curb illegal conversions and reconnect converted Hindus with their roots. Around 4 million conversions have been stopped, and approximately 900,000 reconversions have occurred. Strict laws against forced conversions in various states and protection of women from Love Jihad conspiracies are among VHP’s significant contributions.


*Samrasata (Equality):*

Dr. B.R. Ambedkar once opined that if the country's saints collectively declared that there was no place for untouchability in Hindu scriptures, this curse could be eradicated. Keeping this in mind, during the Udupi Dharma Sansad on December 13-14, 1969, prominent saints of India, through the special efforts of the then RSS chief Shri Guruji, passed a historic resolution for social harmony with the declaration “Hindavah Sodara Sarve, Na Hindu Patito Bhavet.” Means all Hindus are brothers, no one is inferior or untouchable 


In the 1994 Dharma Sansad in Kashi, the invitation to the Dom Raja was personally extended by saints, who not only accepted the offerings at his home but also welcomed him with garlands at the conference. This Dharma Sansad saw 3,500 saints in attendance. Thousands of people from tribal, backward, and very backward communities have been trained as village priests and have been honored and appointed as priests in temples, thanks to the VHP’s village priest training campaign.


On November 9, 1989, the laying of the foundation stone of Shri Ram Janmabhoomi by a scheduled caste worker, Kameshwar Choupal, and various programs like Samarasata Yajnas, Samarasata Yatras, Samarasata Goshtis, Hindu Family Friend Plans, and hostels for scheduled castes and tribes have made significant efforts to eradicate untouchability within Hindu society. Since 2003, the anniversaries of great personalities such as Valmiki, Sant Ravidas, and Dr. B.R. Ambedkar, who contributed to social harmony, have been widely celebrated. As a result, the saint community now freely conducts tours, sermons, and communal meals in marginalized settlements.


*Ekatmata (Unity):*

The second World Hindu Conference was held in Prayag from January 27 to 29, 1979, with the participation of 60,000 delegates from 18 countries. The conference was inaugurated by the revered Dalai Lama and was a historic occasion.


In Assam’s Jorhat, from March 27 to 29, 1970, the conference saw participants from all major pilgrimage sites and 45 rivers, where many revered saints and thinkers from the Northeast, including Nagarani Gaidinglu, declared that the nature-worshipping tribal society, which Christian missionaries were trying to trap, is an integral part of Hindu society.


In 1982, Ashok Singhal became an office-bearer of VHP, leading to widespread public awakening. The Ekta Yatra in 1983 saw participation from 60 million people. The first Dharma Sansad in New Delhi was held in April 1984.


*Sewa (Socil Service):*

With the help of societal cooperation, VHP operates over 4,500 service projects across the country. These include 840 Sanskar schools in 31 states, serving 17,000 children. Other prominent projects include primary health centres, self-employment centres, residential hostels, orphanages, medical centres, computer, tailoring, and embroidery training centres, and marriage centres.


*Cow Protection:*

In the fields of cow protection and enhancement, VHP has undertaken numerous initiatives. It had developed native cow breeds at 60 locations, Panchgavya-based medicines production centres at 40 locations, and Panchgavya research centres at 3 locations. Its Efforts had freed 2.5 million cows from slaughterers, enacted stringent laws against cow slaughter in several states and promoted self-reliance through cow rearing. It established at many places that that ‘We do not rear cow, cow rears us.’ 


Dharma Yatras & Pilgrimage Protection & Promotion:

India is a land of pilgrimages where the soul resides in its holy places. VHP’s Dharma Yatra Mahasangh has played a crucial role in organizing pilgrimages such as the Kanwar Yatra, Kailash Mansarovar Yatra, Amarnath Yatra, Govardhan Parikrama, Jagannath’s Nav Kalevar Yatra, Ram-Janaki Vivah Baraat Yatra, and Baba Amarnath’s Yatra since 1995. It has worked to make these journeys economical, successful, and spiritually enriching while liaising with authorities and reviving many dormant pilgrimages.


In 1995, when terrorists threatened to halt the Amarnath Yatra, a massive rally of 51,000 Bajrang Dal activists and 100,000 other Shiva devotees ensured that the pilgrimage continued unimpeded. The re-initiation of the Baba Budha Amarnath Yatra by Bajrang Dal in 2005 halted the exodus of Hindus and boosted the confidence of the community and security forces. Other significant pilgrimages like the Nallahad Mahadev Yatra in Mewat, Dattapith Yatra in Karnataka, and the Ram-Janaki Baraat Yatra from Ayodhya to Janakpur have also fostered social harmony and unity.


*Hindus abroad:*

With the concept of ‘Vasudhaiva Kutumbakam, (The World Is One Family)", the VHP has taken various steps to ensure the safety, cultural preservation, and continuity of Hindu life values for Hindus living abroad. VHP has successfully organized local and global conferences in countries like the USA, UK, Australia, Canada, Fiji, New Zealand, Denmark, Thailand, Indonesia, Taiwan, Sri Lanka, Netherlands, Singapore, Nepal, Germany, and others. In many of these countries, Hindu festivals and traditions are celebrated with great fervor. During and after the shri Ramlala Pran Paratishtha in Ayodhya, lakhs of Hindus participated in hundreds of programs spread over dozens of countries on the globe.


*Mass Movements & awareness Campaigns:*

Throughout its 60-year journey, VHP has conducted numerous awareness campaigns that have set global records. The Ram Janmabhoomi movement, started in 1984, united more than 650 million people from thousands of villages, raised voice from streets to the Supreme Court. After 496 years of struggle, the consecration of Ram Lalla on January 22, 2024, in Ayodhya marked this historic day in golden letters. It had established that Hindus can also fight and regain its lost glory through a democratic, peaceful and legal way.


To protect the Ram Setu, built by Nala and Neela on Lord Ram’s orders, from government attacks, VHP led a major public movement. When the then central government denied Ram's existence in the Supreme Court, VHP’s nationwide blockade, only for four hours, compelled the government to yield on the same day. The massive turnout of Ram devotees at Delhi’s Swarn Jayanthi Park left the government’s stubborn stance unyielding.


VHP’s youth wing, Bajrang Dal, and Durga Vahini have been at the forefront of protecting the country, religion, culture, and nation since 1984. Service, security, and values have been their core mantras. VHP has also taken significant steps in promoting Sanskrit language, Vedic education, and values.


Despite these achievements, the religious conversions, Love Jihad, social harmony, liberation of religious sites (temples) from government controls, protection family system, cultural erosion, lack of religious education, foreign infiltration, demographic imbalances and Jihadist-Communist-Missionery threats are some of the challenges ahead. The organisation is regularly addressing these challenges to ensure liberation and advancement for Hindu society.

----

----

No comments:

Post a Comment

Featured Post

फेरूपुर में ग्रामीण कल्याणकारी विकास समिति की ओर से वितरित किए गए कंबल

हरिद्वार /फेरूपुर 26 दिसंबर ग्राम फेरुपुर स्थित डिग्री कॉलेज में ग्रामीण कल्याणकारी विकास समिति की ओर से आयोजित कंबल वितरण कार्यक्रम में मुख...