31 अक्टूबर को दीपावली मनाना रहेगा शुभ :- श्रीमहंत नारायण गिरि

 वर्ष 1963 में दीपावली पर्व पर 2024 जैसी ही परिथितियां थींः श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज

उस वर्ष भी दीपावली का पर्व पहले दिन 16 अक्टूबर को ही मनाया गया था

रात्रि में अमावस्या तिथि होने के कारण इस वर्ष भी पहले दिन 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाना तर्कसम्मत व शास्त्र सम्मत होगा

गाजियाबादः

श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर, श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने कहा कि जैसी स्थिति इस बार दीपावली पर्व पर बन रही है।, वैसी ही स्थिति वर्ष 1963 में भी बनी थी। तब भी दीपावली का पर्व पहले दिन ही मनाया गया था। अतः इस वर्ष भी दीपावली का पर्व 31 अक्टूबर को ही मनाना तर्कसंगत व शास्त्रसंगत होगा। 1 नवंबर को रात्रि में अमावस्या तिथि ही नहीं है तो उस दिन दीपावली का पर्व मनाना उचित नहीं होगा। महाराजश्री ने बताया कि वर्ष 1963 में 16 अक्टूबर 1963 को अमावस्या सायंकाल 16.15 पर प्रारंभ हुई थी एवं 17 अक्टूबर 1963 को सायंकाल 18.13 पर समाप्त हुई थी। सूर्यास्त 17. 29 को हुआ था। दीपावली 16 अक्टूबर को ही लिखी गई थी क्योंकि उस दिन ही पूरी रात्रि अमावस्या थी। 2024 में अमावस्‍या तिथि 31 अक्‍टूबर को दोपहर के बाद 3 बजकर 52 पर शुरू होकर 1 नवंबर को शाम 6 बजकर 16 मिनट तक रहेगी। 1 नवंबर को सूर्यास्त 17.32 पर है और अमावस्या का अंत 18.16 पर है। ऐसी स्थिति में वर्ष 1963 में पहले दिन यानि 16 अक्टूबर को ही दीपावली मनाई गई थी क्योंकि अगले दिन रात्रि में अमावस्या का योग नहीं था। प्रदोष में अमावस्या व्याप्त नहीं थी और  अर्धरात्रि में अमावस्या नहीं थी। यह सब पहले दिन यानि 16 अक्टूबर को ही मिल रहा था। इसी कारण दीपावली 16 अक्टूबर को मनाई गई। इस वर्ष भी पहले दिन यानि 31 अक्टूबर को ही रात्रि में अमावस्या तिथि है। प्रदोष व अर्ध रात्रि में भी अमावस्या व्याप्त है। 1963 के इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि परंपरा के अनुसार 31 अक्टूबर 2024 को ही दीपावली शास्त्रसम्मत है। श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने कहा कि आज से 60 साल पहले के ये पंचांग हैं। उस समय पंचांग की एक एक चीज हाथों से की जाती थी न कि आज की तरह कॉपी पेस्ट की जाती थी। आज  देश की परंपराओं को खण्डित करने का षड्यंत्र चल रहा है और इसी कारण अधिकांश पर्व दो-दो दिन मनाए जाने लगे हैं, जो बहुत ही खतरनाक है। इस पर चुप्पी साधे रखना और भी खतरनाक होगा। ऐसे षडयंत्र का विरोध करना होगा, तभी देश की परम्पराएं बनी रहेंगी और सनातन धर्म को मजबूत किया जा सकेगा। ,

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